Rahul Gandhi
राहुल गांधी अबोध नेता हैं या अबूझ पहेली ?
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर जिस प्रकार उठापटक चल रही है, वह खासकर राहुल गांधी के लिए एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है। कई बार कांग्रेस पार्टी पर सहयोगी दलों की अपेक्षाओं के अनुसार सीटों को साझा न करने के आरोप लगे हैं, जिससे गठबंधन में तनाव का पैदा होना स्वाभाविक है।
कांग्रेस खुद को एक राष्ट्रीय वैकल्पिक शक्ति मानती है, इसलिए वह कई सीटों पर दावा करती है, जो क्षेत्रीय दलों को खटकने लगता है। इस कारण से सीटों को लेकर अंत तक असमंजस की स्थिति बनी रहती है। महागठबंधन का सीटों को लेकर आलम यह है कि कई स्थानों पर एक ही विधानसभा पर उसके घटक दल आमने-सामने चुनावी मैदान में उतर गए हैं। कांग्रेस अब तक बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 61 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। राजद ने अपनी 143 प्रत्याशियों की सूची में वैशाली, लालगंज और गहलगांव सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ तथा तारापुर सीट पर पूर्व राज्य मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
राहुल गांधी को इस विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की 16 दिन की यात्रा के दौरान मोदी सरकार को वोट चोर कहने और चुनाव आयोग पर आरोप लगाने जैसे मुद्दों को जोरशोर से उठाते हुए देखा गया। उन्हें लगने लगा कि जनादेश के माध्यम से उनकी स्थिति मजबूत हो रही है, और इसी कारण कांग्रेस की ओर से अधिक सीटों की मांग की जा रही है। इससे कांग्रेस और महागठबंधन के बीच कसमकश की स्थिति बनी हुई है।
कई विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की राजनीति नैतिकतावादी अधिक है, जबकि भारतीय राजनीति में यथार्थवाद और रणनीतिक समझ भी जरूरी होती है। विदेश दौरों पर जाना, खासकर सीट बंटवारे जैसे महत्वपूर्ण समय पर, संवाद की कमी और नेतृत्व की रणनीतिक कमजोरी को उजागर करता है। यदि वह इन पहलुओं को बेहतर ढंग से संभालते हैं, तो उन्हें एक समझदार और कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में पहचाना जा सकता है।
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा जैसी पहल के माध्यम से जमीनी जुड़ाव मजबूत करने का प्रयास किया है, जो दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। वह संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय जैसे मूलभूत मुद्दों पर लगातार बात करते हैं, जिससे उन्हें एक स्थिर और स्पष्ट राजनीतिक पहचान बनाने में सहायता मिलती है।
2024 के आम चुनावों में कांग्रेस द्वारा इंडिया गठबंधन की पहल यह संकेत देती है कि राहुल गांधी अब भारतीय राजनीति की सच्चाइयों को समझने लगे हैं और सहयोग के महत्व को स्वीकार कर रहे हैं। फिर भी, उन्हें राजनीति की व्यावहारिकताओं और गठबंधन प्रबंधन में और अधिक परिपक्वता दिखाने की आवश्यकता है। ऐसे में यह विचारणीय है कि राहुल गांधी वास्तव में एक प्रबुद्ध रणनीतिक नेता हैं या राजनीति की पेचीदगियों में अभी भी अबोध बने हुए हैं।
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