बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के जंगलराज
एनडीए क्यों अब भी देता है जंगलराज की दुहाई
बहुत सारे लोग यह तर्क देते हैं कि लालू राज के 20 साल बीतने के बाद भी एनडीए अभी भी जंगल राज की दुहाई क्यों दे रहा है। उनका यह जानना जरूरी है कि जो पीढ़ी आज अपने वोट से सरकार बनाने वाली है, उसे यह जानने का पूरा हक है कि चुनाव में दम ठोकने वाले वे दल कौन हैं, जिन्होंने बिहार में जंगल राज की न केवल स्थापना की, बल्कि वे उसे अपनी निगरानी में चलाते रहे, उस दल के मुखिया अब भी वही लालू प्रसाद यादव हैं, जिन्होंने शहर का शहर गुंडों और माफियाओं को सौंप दिया था।
जो राजद आज गरीबों को न्याय और जातियों को सम्मान और नौकरी दिलाने का दम भर रहा है, उसी राजद के सत्ता में रहने के दौरान (1990-2005) गरीब काटे गए और सामाजिक संघर्ष के नाम पर कई नरसंहार को अंजाम दिया गया। बिहार सरकार को जंगलराज नाम उस समय मिला जब लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाले के मामले में जुलाई 1997 में इस्तीफा दे दिया। जेल जाने से पहले उन्होंने राज्य की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी थी। उसी वर्ष बिहार में जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल हुई थी। राज्य की प्रशासनिक मशीनरी लगभग ठप्प हो गई थी। इसी साल मानसून की बारिश पटना में सैलाब लेकर आई। शहर डूब चुका था। कहीं से पानी की निकासी नहीं हो पा रही थी, और कई कॉलोनियों में पानी घरों तक घुस गया था।
इसी कड़ी में, नाले-नालियों की बदहाल स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण सहाय ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए अगस्त 1997 में पटना हाईकोर्ट की जस्टिस बी. पी. सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि बिहार सरकार का नाम लेने लायक नहीं है और यहां जंगलराज कायम है। हाईकोर्ट ने उस समय की शासन व्यवस्था को जंगलराज से भी बदतर बताया। यह टिप्पणी नागरिक सुविधाओं की कमी, नगर निकासी और सीवर जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की घोर उपेक्षा को लेकर की गई थी।
वर्ष 2002 में भी पटना हाईकोर्ट ने बिहार लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वहाँ भी जंगलराज कायम है, जहाँ कोई भी लोकतांत्रिक नियमों का पालन नहीं होता और शासन व्यवस्था राजा की तरह चलाई जा रही है। इसके बाद से जंगलराज शब्द विपक्षी आलोचना और चुनावी बहस का एक प्रमुख मुद्दा बन गया। बिहार के तर्ज पर दिल्ली में भी 2021 में जब स्ट्रीट वेंडर्स से जुड़ी अव्यवस्था पर मामला सामने आया, तब दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि कोई भी कहीं भी स्टॉल लगाना शुरू कर दे, तो दिल्ली भी जंगलराज की श्रेणी में आ जाएगी। इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश में 2024 में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद, अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने भी राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए जंगलराज शब्द का प्रयोग किया।
लालू प्रसाद यादव तथा राबड़ी देवि के जंगलराज में निम्न घटना हुई जिसे जनता कभी भूल नहीं सकती है। 1992 में कौन बारा नरसंहार को कौन भूल सकता जब गया में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के कार्यकर्ताओं ने एक ही जाति के 40 लोगों की हत्या कर दी। नहर के पास लेकर जाकर उनका गला रेता गया। उसी तरह बथानी टोला नरसंहार 1996 में हुआ। भोजपुर जिले की एक जातीय सेना ने 21 दलितों की हत्या कर दी थी, जिसमें महिलायें व बच्चे भी मारे गए थे। फिर 1997 ऱणबीर सेना द्वारा लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार जिसमें 60 दलितों की हत्या हुई थी। 1999 में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के कार्यकर्ताओं ने जहानाबाद जिले में एक मंदिर के पास 34 उच्च जाति के लोगों को लाइन में खड़ा कर मार डाला। उसके अलावा लालू शासन के दौरान सन 2000 में भी नावादा जिले में कुर्मी जाति के 12 लोगों की हत्या की गई थी।
बिहार में 1990 से 2005 को दौरान नरसंहार होते रहे, लेकिन लालू-राबड़ी की सरकार निष्क्रिय बनी रही। लालू प्रसाद यादव खुद भी जातिगत वैमनस्य को हवा देते रहे। दूसरी तरफ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जातीय शत्रुता एक दम से थम गई, क्योंकि शासन ने जातीय आधार पर किसी को बढ़ावा नहीं दिया और ना किसी के साथ पक्षपात ही किया। सरकार की सारी कल्याणकारी योजनाएं सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के पास सबसे पहले पहुंची। अभाव के सारे पहलुओं पर एक साथ काम हुआ। महिलाओं को प्राथमिकता दी गई। घर और चूल्हा चौकी को सबसे मजबूत बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार ने सबसे अधिक संसाधन लगाए। सामाजिक गैर बराबरी, सौहार्द बढ़ा कर दूर की जा सकती है, भेदभाव बढ़ाने के साथ नहीं।
आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए एनडीए ने एक बार फिर राज्य में जंगलराज के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। एनडीए नेताओं का आरोप है कि जब-जब बिहार में राजद के नेतृत्व में सरकार बनी, तब-तब राज्य में अपराध,भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अराजकता अपने चरम पर रही है। एनडीए ने जनता से अपील की है कि वे बिहार को पुनः जंगलराज की ओर ले जाने वालों से सतर्क रहें और ऐसी सरकार का समर्थन करें जो विकास, सुशासन और सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
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