नीतीश और लालू का अंतिम चुनाव, एक बनेगा किंग तो दूसरा किंगमेकर!
उम्र के जिस पड़ाव में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव हैं, उससे नहीं लगता कि ये दोनों दिग्गज पाँच साल बाद भी चुनावी राजनीति में सक्रिय रहेंगे। नीतीश कुमार इस समय 74 साल के हैं तो लालू प्रसाद यादव इस समय 77 साल के हैं। दोनों पर इस समय उम्र हावी है और दोनों का स्वास्थ्य दिन प्रति दिन गिरता जा रहा है। लालू प्रसाद यादव मधुमेह और किडनी रोग से ग्रसित हैं तो नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर अब असर दिखने लगा है। वैसे नीतीश कुमार शारीरिक रूप से अभी स्वस्थ हैं। पर उनके लिए भी 2030 का विधान सभा लड़ना संभव नहीं दिखता। बिहार और देश की राजनीति में इन दोनों बड़े नेताओं की राजनीति का बहुत कुछ दारोमदार इस विधान सभा चुनाव पर टिका है। इस चुनाव में एनडीए जीतता है तो नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के किंग बन सकते हैं, यदि इंडिया गठबंधन जीतता है तो लालू प्रसाद यादव किंग मेकर बन सकते हैं।
जहां तक शिक्षा की बात है, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं, पर वह युवावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये। उन्होंने जे.पी.आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी की। नीतीश कुमार ने चुनावी राजनीति 1985 शुरू की। वह पहली बार बिहार के हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुने गए। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर में विभिन्न दलों और गठबंधनों के साथ काम किया तथा बाद में जेडीयू के सर्वेसर्वा बन गए।
बिहार के मुख्यमंत्री बनने से पहले नीतीश कुमार केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं। अक्टूबर 1989 से नवम्बर 1990 तक उन्होंने कृषि राज्य मंत्री का दायित्व संभाला और उसके बाद 1998 से अगस्त 1999 तक देश के रेलमंत्री भी बने। 1999 से 2001 के बीच उन्होंने फिर से केंद्रीय कृषि मंत्री का पद संभाला। पहली बार 3 मार्च 2000 को वह मात्र 7 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने और तब से लेकर अब तक नीतीश कुमार कुल 8 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुकें हैं। वर्तमान विधानसभा चुनाव की बात करें तो एनडीए गठबंधन इस चुनाव में मजबूत स्थित में नजर आ रहा है। नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर बिहार में शासन व्यवस्था को सबसे पहले ठीक किया, जो कि लालू और राबड़ी के जमाने में काफी बिगड़ चुका था। बिहार में लोग इस कारण नीतीश कुमार को सुशासन बाबू भी कहते हैं।
लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति के एक प्रमुख और चर्चित नेता हैं। वह वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्हें सामाजिक न्याय के पक्षधर तथा पिछड़े और वंचित तबकों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए जाना जाता है। लालू यादव भी छात्र राजनीति के जरिए ही सार्वजनिक जीवन में आए। वह भी जे पी आंदोलन की ही देन हैं। लालू यादव 10 मार्च 1990 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, तब जनता दल चुनाव जीतकर शासन में आया था। वह इस पद पर 28 मार्च 1995 तक बने रहे। जनता दल 1995 में भी चुनाव जीत गया और लालू यादव फिर से मुख्यमंत्री बन गये। उन्हें 25 जुलाई 1997 को एक विपरीत परिस्थिति में त्याग पत्र देना पड़ा, क्योंकि उन पर चारा घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा था। लालू यादव ने जनता दल में विभाजन करा कर 1997 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की स्थापना की थी, जो बाद में बिहार की राजनीति का एक केंद्रीय स्तंभ बन गया। हालाँकि बाद में उनका नाम चारा घोटाला के अलावा जमीन के बदले नौकरी जैसे मामलों में भी आया और उनके खिलाफ सीबीआई की जांच भी हुईं। उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इससे उनके राजनीतिक करियर पर गहरा असर पड़ा और उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचा।
लालू यादव ने केंद्र की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 24 मई 2004 को उन्हें डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में वे रेल मंत्री बनाया गया था। उन्हें रेल परिचालन को फायदे में लाने का श्रेय प्राप्त है। लालू यादव इस समय अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में लगे हैं। लोग उसे उनका पुत्र मोह भी कहते हैं। तेजस्वी यादव वर्तमान में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और दो बार उपमुख्यमंत्री के पद पर रह चुके हैं। लालू यादव अपनी गिरती सेहत से चिंतित हैं और अपने लिए इस चुनाव को अंतिम अवसर के रूप में देख रहे हैं। अगर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में वह राजद को सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें दिलाने में सफल होते हैं, तो निश्चित रूप से उन्हें किंग मेकर की उपाधि मिल जाएगी।
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