यह विश्वास किया जाता है कि जन्माष्टमी के दिन उपवास करने से भगवान कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वे अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होते हैं और उन्हें सुख, शांति और मोक्ष प्रदान करते हैं।
हिंदू धर्म और संस्कार में उपवास का बड़ा विधान है। यह हमारे धार्मिक संस्कार के साथ-साथ हमारी संस्कृति का एक बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा है। चाहे जन्माष्टमी हो या राम नवमी, नवरात्रि हो या शिवरात्रि, यहां तक कि एकादशी और प्रदोष जैसे मासिक दिवसों पर भी व्रत और उपवास का विधान है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में कहा है कि आत्मसंयम और इच्छाओं पर नियंत्रण पाना मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक है। उपवास इस मार्ग पर चलने का एक साधन है। आज जब जन्माष्टमी का पर्व मना रहे हैं तो यह समझना होगा कि उपवास रखने का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व क्या है।
हम सब लोग अपने इष्टदेव की आराधना और पूजा करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त भी उनके जन्म के अवसर पर उपवास रखते हैं। उपवास भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इससे भक्त अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करते हैं। यह आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण का अभ्यास है। यह भक्ति मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उपवास का उद्देश्य शारीरिक और मानसिक शुद्धि भी है। माना जाता है कि उपवास से शरीर की अशुद्धियों का नाश होता है और मन शांत एवं शुद्ध होता है, जिससे भक्त का मन भगवान के ध्यान और साधना में अधिक गहराई से लगता है और वह लीन हो पाता है। इसके अलावा उपवास से इंद्रियों और इच्छाओं पर स्वनियंत्रण पाने का प्रयास किया जाता है। जब भक्त उपवास रखता है तो वह अपने समय का अधिकांश भाग पूजा, कीर्तन और भगवान के ध्यान में बिताता है। उपवास से शरीर हल्का महसूस करता है, जिससे ध्यान और साधना में अधिक एकाग्रता प्राप्त होती है। इसके अलावा शरीर में उत्साह रहता है।
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