बिक्रम उपाध्याय का Blog 'कुछ सुना, कुछ देखा': निजी क्षेत्र में आरक्षण का शोशा, कांग्रेस का प्रयोग बिफरे देश के लोग

कांग्रेस ने समय पर खतरा भांप लिया और कन्नड के नाम पर एक आत्मघाती कदम से पीछे हट गई। लेकिन कांग्रेस के इस प्रयोग ने देश में खलबली सी मचा दी है।

बिक्रम उपाध्याय का Blog 'कुछ सुना, कुछ देखा': निजी क्षेत्र में आरक्षण का शोशा, कांग्रेस का प्रयोग बिफरे देश के लोग

कर्नाटक में भाषा के नाम पर आरक्षण से बवाल, सिद्धारमैया सरकार ने वापस खींचे कदम। (फोटो- सोशल मीडिया)

कांग्रेस ने कर्नाटक में निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण लागू करने का एक प्रयोग किया। यह प्रयोग भाषा को आधार बना कर किया गया। शायद इसलिए कि राज्य में कोई बड़ा बवाल ना हो, जाति के आधार पर करते तो निश्चित रूप से खून खराबा होता। लेकिन इतना तय है कि यदि भाषा के आधार पर ही आरक्षण लागू हो गया होता तो देर सबेर जाति के आधार पर भी इसे लाने से कोई रोक नहीं सकता था।

कांग्रेस ने समय पर खतरा भांप लिया और कन्नड के नाम पर एक आत्मघाती कदम से पीछे हट गई। लेकिन कांग्रेस के इस प्रयोग ने देश में खलबली सी मचा दी है। लोग आशंकाओं के साथ अपने डर का इजहार खूब कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जिस तरह का विमर्श चल रहा है, वह समाज में शांति के लिए अनुकूल नहीं दिख रहा है। कुछ लोगों की राय बिना उनके नाम के रखने की कोशिश कर रहे हैं।

एक सज्जन का कहना है कि जो लोग आरक्षित वर्ग में रहकर भी अपनी प्रतिभा के बल पर नौकरी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं वे लोग अब प्राइवेट जॉब में भी आरक्षण खोज रहे हैं। वह कहते हैं- सुनो! अगर सरकार इस पर आरक्षण लागू करती है तो प्राइवेट सेक्टर बर्बाद हो जाएगा। साथ ही, MNCs इस घटिया सिस्टम में विश्वास नहीं करेगी। बेहतर है कि भारत को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत किया जाए। आरक्षण पर निर्भर रहोगे तो तुम कुछ नहीं कर पाओगे। यह भारत के शोषण का हथियार बन जाएगा।

किसी की राय है कि आरक्षण के खिलाफ़ कोई भी बहस नहीं जीती जा सकती, क्योंकि इसे सही ठहराने का एक अंतिम तर्क है - हज़ारों साल का उत्पीड़न सिद्धांत। मान लेते हैं कि सामाजिक समानता के मुद्दे और समाजवाद का समर्थन हम भी करते हैं और गरीब, एससी एसटी और ओबीसी को लोगों से छीन कर आरक्षित सीटें दे देते हैं। तो क्या अमीर एससी एसटी और ओबीसी अपनी सीट छोड़ देंगे। जब कोई परिवार आरक्षण का लाभ एक बार उठा लेता है तो अगली पीढ़ी अपनी जाति का आरक्षण छोड़ देगी, ताकि पहली बार गरीब एससी एसटी ओबीसी को अवसर मिले और धीरे-धीरे पूरा एससी एसटी ओबीसी समुदाय मुख्यधारा के जीवन में आए और आत्मनिर्भर बन सके। शायद नहीं। इनका सुझाव है कि राजनेताओं को अब दलितों की दो श्रेणियों गरीब असली दलित और अमीर नकली दलित के रूप में बांट देना चाहिए। गरीब दलितों का समर्थन करें और अमीर नकली दलितों द्वारा उन पर किए गए उत्पीड़न को रोकें।

एक ने तो जबरदस्त कटाक्ष की है। वे कहते हैं निजी क्षेत्र में भी आरक्षण दे दीजिए। निस्संदेह हमारे देश का विकास होगा, जैसा कि पिछले 70 वर्षों में हुआ है। टाटा, महिंद्रा, सुजुकी जैसी कंपनियों में ये लोग विशेष इंजन बनाएंगे, जो 10 मिनट चलने पर ही गर्म हो जाएंगी। फिर आपको क्रिकेट जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इसे शामिल करना चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में 5 से 6 खिलाड़ियों को आरक्षित वर्ग से लेना चाहिए। भारत को महाशक्ति बनाने के लिए निजी क्षेत्र में भी आरक्षण दें। हम अमेरिका को पीछे छोड़ देंगे। फिर नौकरी में ही क्यों सभी मनोरंजन पार्कों में छूट मिलनी चाहिए। या वीआईपी पास ताकि उन्हें लाइन में न लगना पड़े। हवाई जहाज़ यात्रा या लग्जरी गंतव्यों के लिए भी छूट की योजनाएं आनी चाहिए। जाति प्रमाण-पत्र दिखाने पर बिल्डर को सस्ते घर देने पर मजबूर कर सकते हैं और वाहन, मोबाइल, आभूषण खरीदने पर एक खरीदो-एक मुफ़्त पाओ का ऑफ़र भी मिलना चाहिए।

एक शख्स ने कुछ गंभीर बातें भी की है। उनका कहना है कि आरक्षण से किसी को कोई मदद नहीं मिलती। जिन लोगों को मदद की ज़रूरत है, वे शायद ही योजनाओं के बारे में ठीक से जानते हैं। इसका फ़ायदा सिर्फ़ मध्यम वर्ग के जाति प्रमाण-पत्र धारकों को मिलता है, जो आरक्षण के बिना भी जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। अगर आरक्षण की व्यवस्था सही से काम करती तो दलितों को अभी भी इतनी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। आदिवासियों को अभी भी पुलिस द्वारा प्रताड़ित नहीं किया जाता। आरक्षण को आय स्लैब के हिसाब से लागू किया जाता तो गरीबी रेखा से नीचे रह रही जातियों को सीधे लाभ मिलता। दुनिया के बाकी हिस्सों में इसी तरह का काम होता है। जाति प्रमाण पत्र प्रणाली का बहुत दुरुपयोग किया जाता है। इसी के बाल पर अयोग्य लोग सत्ता के पदों पर काबिज हैं। भेदभाव की समस्या केवल रोजगार या उच्च शिक्षा के स्तर पर ही नहीं उभरती। यह समस्या स्थानिक है और इसे जमीनी स्तर पर संबोधित किया जाना चाहिए। सरकार को निजी क्षेत्र पर बोझ डालने के बजाय अपने स्तर पर भेदभाव के मुद्दे को हल करने का प्रयास करना चाहिए।

एक और व्यक्ति का कहना है कि निजी क्षेत्र प्रतिभा और क्षमता पर चलता है। और यह एक कड़वी सच्चाई है कि आरक्षण में प्रतिभा से समझौता किया जाता है। निजी क्षेत्र एक लाभ कमाने वाला उद्यम है और इसे जातियों के प्रतिनिधित्व की परवाह क्यों करना चाहिए। निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने का विचार भारत के लोगों के बीच ही एक बड़ी दरार पैदा करने की कोशिश है। क्योंकि इससे निजी क्षेत्र अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता और कार्यकुशलता खो देगा। आज की स्थिति में, केवल निजी क्षेत्र ही भारत की बेरोजगारी की समस्या को किसी तरह से संभाल रहा है। यदि इसे भी आरक्षण के जाल में फंसा दिया गया तो निजी क्षेत्र भी विस्फोट कर देगा।

एक बड़े लेखक का कहना है कि हमने 90 के दशक तक समाजवाद की कोशिश की। यह बुरी तरह विफल रहा। इसलिए 90 के दशक से हम पूंजीवाद की ओर बढ़ने लगे। अब निजी क्षेत्र में हस्तक्षेप इसको बुरी तरह प्रभावित कर देगा। यदि भारत में निजी कंपनियां इसे अपनाने के लिए मजबूर होंगी तो कोई भी विदेशी कंपनी भारत नहीं आएगी। हम अपना एफडीआई खो देंगे। कोई भी मजबूत निजी फर्म भारत में काम नहीं करेगी सब दूसरे देशों में चली जाएंगी। फिर रोजगार देने के लिए कोई नहीं बचेगा। बस लालफीताशाही बढ़ जाएगी।

एक ने तो कांग्रेस को जम कर कोसा है। उसका कहना है – मैं सिर्फ एक वोट बैंक हूं, इस नाते, अब मैं समझता हूँ कि यह कितनी बड़ी विलासिता है! और जब प्रतिभा, जो पहले से ही विकसित देशों में जा रही है, मैं आशा करता हूं कि एक दिन, भारत का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बनूंगा। किसी दिन जब वे भारत के अविकसित होने के लिए मुझे (श्रेणी के उम्मीदवारों) दोषी ठहराएंगे, तो मैं दुखी हो जाऊंगा और इसलिए नहीं कि मैंने कभी वास्तविक प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं किया, बल्कि इसलिए कि जिस समस्या को वे हल करना चाहते थे, वह अभी भी वैसी ही है। जो लोग यह सोचते हैं कि आरक्षण ही उनकी सभी समस्याओं का समाधान है तो इससे कुछ भी बदलाव नहीं आएगा।

बिहार के एक व्यक्ति ने हास्य का पुट डालते हुए कहा - यदि बिहार में निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किया जाता है तो शीर्ष की बहुराष्ट्रीय कंपनियां बिहार में अपने कार्यालय खोलने के लिए आएंगी। बिहार 2027 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इस अत्याधुनिक नवाचार न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में बिहार का नाम रोशन होगा। हर गली में तकनीकी स्टार्ट-अप उभरेंगे और तबाही मचाएंगे और मुझे लगता है कि आने वाले वर्षों में अकेले बिहार से 100 से अधिक यूनिकॉर्न होंगे। बिहार के लोग 2035 तक बृहस्पति पर एक कालोनी को हकीकत बना डालेंगे। बिहार की विशाल गगनचुंबी इमारतें हांगकांग और शेनझेन जैसे शहरों को कड़ी टक्कर देंगी। पर्यटक लंदन और पेरिस को छोड़कर बिहार में अपनी छुट्टियां बिताने जाएंगे।