कनाडा के प्रधानमंत्री ने अभी तक अपने दावों के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया है, लेकिन अपने अपरिपक्व बयानों से दिल्ली और ओटावा के बीच संबंधों को तनावपूर्ण जरूर बना दिया है।
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो। (फोटो- सोशल मीडिया)
इसी साल मार्च में ट्रूडो ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि वह रोज़ सोचते हैं कि यह क्रेज़ी जॉब छोड़ दें, लेकिन छोड़ नहीं पाते। जस्टिन के लिए प्रधानमंत्री का पद एक क्रेज़ी जॉब है, जिसे वह अगले चुनाव तक जारी रखना चाहते हैं। शायद ट्रूडो को अपने राजनीतिक भविष्य का अंदाज़ बहुत पहले हो गया था और इसी कारण वह तमाम उल्टी-सीधी बातें कर रहे हैं और उटपटाँग फैसले ले रहे हैं। वे जनता के सवालों का सामना नहीं करना चाहते, और उन्हें यह भी सर्वेक्षणों से पता चल गया है कि वह कनाडाई लोगों के बीच तेज़ी से लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। कनाडा का अगला आम चुनाव बस अगले साल अक्टूबर में ही होने वाला है।
जनमत सर्वेक्षण में बढ़ रहा पीएम के खिलाफ असंतोष
अभी तक जितने भी जनमत सर्वेक्षण हुए हैं, उनसे साफ संकेत मिलता है कि लोगों में उनकी सरकार को लेकर असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। उनके शासनकाल में कनाडाई लोगों को आवास, महंगाई और बेरोज़गारी की समस्या विकराल होती जा रही है, और विपक्षी कंजर्वेटिव नेता उनकी नाक में दम किए हुए हैं। ट्रूडो अब अपनी ही लिबरल पार्टी पर बोझ बनते जा रहे हैं। कनाडा में यह आशंका घर करने लगी है कि ट्रूडो इनसे पार पाने की स्थिति में नहीं हैं, और अच्छा है कि चुनाव से पहले ही वह बाहर निकलने का विकल्प सोच लें। अब उनकी ही पार्टी के कुछ सहयोगियों ने सुझाव देना शुरू कर दिया है कि उनके जाने का समय आ गया है। ट्रूडो का व्यक्तिगत जीवन भी ठीक नहीं चल रहा है। उनकी पत्नी सोफी ग्रेगोइरे पहले ही अलग हो चुकी हैं।
ट्रूडो सरकार और पुलिस ने भारत पर लगाया सीधा आरोप
कई अन्य फैसलों के साथ ट्रूडो द्वारा जिस तरह से कुछ साल पहले कनाडा की धरती पर एक सिख अलगाववादी की हत्या को लेकर विवाद उत्पन्न किया गया है, उसे भी उनका एक क्रेज़ी फैसला ही माना जा रहा है। उनके इस बेवकूफ़ी भरे कदम ने भारत और कनाडा के बीच के राजनयिक संबंधों पर ग्रहण लगा दिया है। हद तो तब हो गई जब जस्टिन ट्रूडो की सरकार और पुलिस ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में सीधे तौर पर भारतीय एजेंटों की संलिप्तता का आरोप लगा दिया। कनाडाई पुलिस ने भारतीय एजेंटों पर "हत्या, जबरन वसूली और हिंसक कृत्यों" में शामिल होने और खालिस्तान समर्थक आंदोलन के समर्थकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया।
आरोपों के पीछे ट्रूडो की राजनीतिक मंशा है
ये आरोप निश्चित रूप से बेतुके हैं। साफ तौर पर ट्रूडो ने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा किया है, क्योंकि कनाडा में सिख समुदाय की संख्या अच्छी-खासी है और वे उन्हें खुश करने के लिए ऐसा करना चाहते हैं। ट्रूडो की राजनीतिक मंशा इसी से साफ झलकती है। उन्होंने भारत पर यह लांछन एक लाइव टेलीविज़न पर बोलते हुए लगाया। ट्रूडो ने कहा कि भारत ने कनाडा में "आपराधिक" कृत्यों का समर्थन करके एक मौलिक गलती की है। उल्लेखनीय है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने अभी तक अपने दावों के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया है, लेकिन अपने अपरिपक्व बयानों से दिल्ली और ओटावा के बीच संबंधों को तनावपूर्ण ज़रूर बना दिया है। भारत ने ना सिर्फ कनाडा से अपने दर्जनों राजनयिक कर्मचारियों को वापस बुला लिया है, बल्कि वीज़ा सेवाओं को भी निलंबित करने की पहल कर दी है। छह कनाडाई राजनयिकों को भी भारत छोड़ने के लिए कह दिया गया है।
ट्रूडो के साथ न जनता है और न ही उनकी पार्टी
जस्टिन ट्रूडो जो इस समय फैसले ले रहे हैं, उनके साथ ना तो कनाडा की जनता है और ना उनकी सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी। एक समाचार एजेंसी के अनुसार, लिबरल पार्टी के सांसदों का एक समूह भारत के खिलाफ एकतरफा फैसले को लेकर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर पद छोड़ने का दबाव बना रहा है। सीबीसी न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह ओटावा में कई असंतुष्ट सांसदों ने मुलाकात कर ट्रूडो को हटाने के एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। सांसदों की यह बैठक हाल ही में सम्पन्न मॉन्ट्रियल और टोरंटो में लिबरल पार्टी के उपचुनाव में हार के बाद हुई थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि कम से कम 30 से 40 सांसद नेतृत्व में बदलाव की मांग करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल थे।
ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी आतंकवादियों के समर्थन के लिए भारत के साथ संबंधों को नष्ट करने का उनका यह प्रयास अब उनके खिलाफ ही माहौल बनाने का कारण बनता जा रहा है। कनाडाई प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि इससे पहले कि वह कनाडा को पूरी तरह से डुबो दें, देश को जल्द से जल्द उनसे खुद को अलग कर लेना चाहिए। एक कनाडाई नागरिक का कहना है कि ट्रूडो नैतिक रूप से भ्रष्ट हैं और अपना पूरा जीवन आत्म-अधिकार की भावना के साथ जीते हैं। वह खुद को अपने पिता पियरे इलियट का पुनर्जन्म मानते हैं। वह यह भी मानते हैं कि कनाडाई करदाताओं का पैसा उनका अपना है और वह जैसे चाहें, उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। वह राजनेताओं के व्यवहार के लिए बने कानूनों से खुद को ऊपर मानते हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में उनकी स्वीकार्यता 63 से गिरकर 28 फीसदी हो गई है
इसी साल अगस्त के अंत में जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने उत्तरी ओंटारियो में एक स्थानीय स्टील कर्मचारी से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया, तो कर्मचारी ने हाथ मिलाने से मना कर दिया और कहा कि "मुझे एक पल के लिए भी आप पर विश्वास नहीं है।" साफ है कि ट्रूडो से जनता हताश और निराश हो गई है। एक पोल ट्रैकर के अनुसार, प्रधानमंत्री के रूप में ट्रूडो की स्वीकृति दर इस समय 63 प्रतिशत से गिरकर केवल 28 प्रतिशत रह गई है। कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे के अनुसार ट्रूडो की सरकार अल्पमत में है और वह उसे गिराने के लिए जल्द से जल्द अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं। यदि पोलीवरे सफल होते हैं, तो कनाडा में चुनाव जल्दी भी हो सकते हैं।
इप्सोस के एक राजनीतिक विश्लेषक और पोलस्टर डेरेल ब्रिकर का कहना है कि ट्रूडो की सरकार मूल रूप से खत्म हो चुकी है। इस समय जो कुछ भी हो रहा है, वह रेत के ढेर से रेत खिसकने जैसा ही है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी विदाई की इबारत दीवारों पर लिखी देख रहे हैं, लेकिन उसे नज़रअंदाज़ करने के लिए कनाडाई अस्मिता का एक स्वांग करने का यत्न करते दिखाई दे रहे हैं।
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