सीएम ने कहा, “मैं बैठक का बहिष्कार करके आई हूं। चंद्रबाबू नायडू को बोलने के लिए 20 मिनट दिए गए। असम, गोवा, छत्तीसगढ़ के सीएम ने 10-12 मिनट तक अपनी बात रखी। मुझे सिर्फ पांच मिनट के बाद बोलने से रोक दिया गया। यह अनुचित है।”
नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने के बाद राष्ट्रपति भवन के बाहर पत्रकारों से बात करतीं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी। (फोटो- सोशल मीडिया)
पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी नेता ममता बनर्जी और केंद्र की मोदी सरकार में एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई है। केंद्र की बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार और राज्य की टीएमसी के नेतृत्व वाली ममता बनर्जी सरकार के बीच संबंध राजनीतिक रूप से भी बहुत विरोध वाला है। केंद्र के हर फैसले का ममता सरकार विरोध करती है, वहीं राज्य सरकार के हर काम पर कथित तौर पर केंद्र सरकार का रवैया भेदभाव वाला रहता है।
शनिवार को नीति आयोग की बैठक में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया था, लेकिन विपक्षी इंडी गठबंधन ने बैठक का बहिष्कार किया, हालांकि उसी गठबंधन में ममता बनर्जी और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन हैं, वे बैठक में शामिल हुए। राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित इस बैठक में मुख्यमंत्रियों, उपराज्यपालों, केंद्रीय मंत्रियों और नीति आयोग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
इस बैठक में भी ममता बनर्जी ने कथित तौर पर भेदभाव का आरोप लगाया। उन्होंने बैठक में कुछ देर रहने के बाद वॉकआउट कर दिया। उनका आरोप था कि बैठक में उनके साथ “भेदभाव” किया गया और “बोलने के लिए पर्याप्त समय” नहीं दिया गया। हालांकि उनके आरोपों का सरकार की ओर गलत बताया गया। प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा जारी एक आधिकारिक फैक्ट-चेक में कहा गया कि यह “भ्रामक” आरोप है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने कहा कि बैठक में जब वह बोलना शुरू कीं तो उनका माइक पांच मिनट में ही काट दिया गया, जबकि अन्य राज्यों के सीएम को लंबे समय तक बोलने की अनुमति दी गई।
उन्होंने कहा, “मैं बैठक का बहिष्कार करके आई हूं। चंद्रबाबू नायडू को बोलने के लिए 20 मिनट दिए गए। असम, गोवा, छत्तीसगढ़ के सीएम ने 10-12 मिनट तक अपनी बात रखी। मुझे सिर्फ पांच मिनट के बाद बोलने से रोक दिया गया। यह अनुचित है।” उनका यह भी कहना था कि वह विपक्ष से अकेली सीएम हैं। उन्होंने कहा, "मैं विपक्ष से अकेली आई थी, लेकिन उन्होंने मुझे 5 मिनट में ही रोक दिया। यह अपमान है। मैं आगे किसी भी बैठक में भाग नहीं लूंगी। कोई भी सरकार इस तरह से काम नहीं करती है" और जब कोई सरकार सत्ता में होती है, तो उसे सभी का ख्याल रखना पड़ता है।"
दिल्ली से कोलकाता पहुंचने पर उन्होंने मीडिया से कहा, “...अगर उन्हें अपनी गलती का एहसास होता तो वे मेरे साथ ऐसा नहीं करते। यह विपक्ष को बदनाम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास था...। उन्हें मुझे बोलने के लिए 30 मिनट देने चाहिए थे...बैठक की शुरुआत में राजनाथ सिंह ने कहा कि सभी को 5-7 मिनट में अपनी बात रखनी चाहिए लेकिन मुझे बोलने के लिए 7 मिनट भी नहीं दिए गए। उनके लोगों को 20 मिनट दिए गए, उन्हें विशेष पैकेज और विशेषाधिकार मिले लेकिन दूसरों को 0 मिनट मिले। मैंने बैठक का बहिष्कार करके सही काम किया। मैं उन्हें बंगाल का अपमान नहीं करने दूंगी। मैं अन्य राज्यों में सरकार चला रहे विपक्षी दलों के साथ मजबूती से खड़ी हूं।”
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