नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला है, जिसमें आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं। केजरीवाल की कोशिश है कि वह अपने पारंपरिक समर्थकों को बनाए रखें, जबकि बीजेपी अपनी रणनीति से नए वोटरों को आकर्षित कर रही है।
अरविंद केजरीवाल और प्रवेश वर्मा। (Photo- Social Media)
नई दिल्ली विधानसभा सीट दिल्ली की सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित सीटों में से एक मानी जाती है। हालांकि, यह सीट वोटों के हिसाब से दिल्ली की दूसरी सबसे छोटी सीट है, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व अत्यधिक है। इस सीट पर हुए पिछले चुनावों ने यह साबित किया कि यहां की राजनीति का असर दिल्ली की समग्र राजनीति पर होता है।
उम्मीदवार और राजनीतिक समीकरण
2020 में कुल 1,46,000 मतदाता थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 1,90,000 हो गई है। इस सीट से कुल 40 उम्मीदवारों ने पर्चे दाखिल किए थे, जिनमें से कुछ ने अपना नाम वापस ले लिया और कुछ के पर्चे रद्द हो गए। अब 23 उम्मीदवार इस सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर प्रमुख दलों के उम्मीदवारों की लड़ाई भी दिलचस्प है। आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस सीट से फिर से चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस बार के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने भी अपनी ताकत दिखाते हुए वीरेंद्र को उम्मीदवार बनाया है।
पिछले चुनावों का ऐतिहासिक आंकड़ा
पिछले तीन दशकों का इतिहास देखा जाए तो, जो भी पार्टी इस सीट को जीतती है, वही दिल्ली में सरकार बनाने में सफल होती है। 1993 में बीजेपी के कीर्ति आज़ाद ने यह सीट जीती और दिल्ली में बीजेपी ने सरकार बनाई। 1998 से लेकर 2008 तक शीला दीक्षित लगातार इस सीट से जीतती रहीं और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख के रूप में शीला दीक्षित को हराया, और फिर 2015 और 2020 में भी केजरीवाल ने इस सीट से जीत दर्ज की। केजरीवाल ने पिछली बार 61.10 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे, जबकि 2015 में उन्होंने 64.34 प्रतिशत वोटों के साथ विजय प्राप्त की थी।
वर्तमान स्थिति: चुनौतीपूर्ण मुकाबला
2020 में इस सीट पर 1,46,000 मतदाता थे, और अब यह संख्या बढ़कर 1,90,000 के आसपास पहुंच चुकी है। इस सीट पर कई सरकारी कार्यालय और आवासीय कॉलोनियां स्थित हैं, जिनमें अधिकांश वोटरों का संबंध सरकारी कर्मचारियों से है। इस सीट पर जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासतौर पर वाल्मिकी और धोबी समुदाय के वोटers का योगदान महत्वपूर्ण है। इस बार के चुनाव में ये दोनों समुदाय निर्णायक हो सकते हैं।
दोनों प्रमुख दलों के संघर्ष
आम आदमी पार्टी ने अपनी पूरी ताकत इस सीट पर झोंकी है। अरविंद केजरीवाल ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत महर्षि वाल्मिकी मंदिर से की है। पार्टी के स्वयंसेवकों के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं बीजेपी भी कम नहीं है, प्रवेश वर्मा ने अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किए हैं। बीजेपी ने अपनी योजनाओं और सुविधाओं के बारे में लोगों से संवाद किया है, जैसे कि लाडली योजना का गारंटी कार्ड।
बीजेपी के प्रवेश वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने कुछ महिलाओं को गारंटी कार्ड और पैसे दिए, जिसे आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग में शिकायत की थी। हालांकि, प्रवेश वर्मा ने इसे अपने एनजीओ द्वारा लोगों की मदद करने के रूप में बताया है।
मुद्दे और समाज का झुकाव
वोटरों से बात करते हुए यह पता चला कि इस बार मुकाबला काफी कड़ा है। वाल्मिकी और धोबी समुदाय के लोग केजरीवाल और बीजेपी के बीच अपनी पसंद के अनुसार मतदान करने के लिए तैयार हैं। कुछ मतदाता बीजेपी की ओर झुकाव दिखा रहे हैं, जबकि अन्य केजरीवाल को अपनी पसंदीदा चुनावी आकृति मानते हैं।
केजरीवाल ने धोबी समाज के लिए एक बड़ी घोषणा की है। उन्होंने धोबी समुदाय के कल्याण के लिए धोबी कल्याण बोर्ड के गठन का वादा किया, जो समाज की समस्याओं का समाधान करेगा। इस घोषणा ने धोबी समुदाय में खुशी की लहर पैदा की है और उनके बीच केजरीवाल के प्रति समर्थन बढ़ा है।
विश्लेषकों की राय
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार नई दिल्ली सीट पर मुकाबला काफी कड़ा है। पत्रकार सुनील कश्यप का कहना है कि केजरीवाल के लिए इस बार चुनाव जीतना उतना आसान नहीं होगा, जैसा कि पहले था। वाल्मिकी समुदाय में इस बार बीजेपी की ओर झुकाव दिख रहा है, जबकि धोबी समुदाय में केजरीवाल की घोषणा ने उनके पक्ष में माहौल बना दिया है।
निर्णायक भूमिका
यह सीट वाल्मिकी और धोबी समुदाय के मतदाताओं के लिए निर्णायक बन सकती है। इन समुदायों के वोट से किसी भी पार्टी को जीत मिल सकती है। कश्यप का कहना है कि इस बार के चुनाव में जीत का फैसला इन समुदायों के मतदाताओं पर निर्भर करेगा।
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला है, जिसमें आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं। केजरीवाल की कोशिश है कि वह अपने पारंपरिक समर्थकों को बनाए रखें, जबकि बीजेपी अपनी रणनीति से नए वोटरों को आकर्षित कर रही है। इस सीट पर वाल्मिकी और धोबी समुदाय के मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो चुनाव के परिणामों को प्रभावित करेंगे।
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