मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के पीछे राज्य की बिगड़ती राजनीतिक स्थिति है। बीजेपी नया मुख्यमंत्री नहीं चुन पा रही, क्योंकि पार्टी को वहां गहरी आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते मणिपुर की राजनीति में अनिश्चितता और संकट का माहौल बना हुआ है।
मणिपुर में संकट गहराया। (फोटो- सोशल मीडिया)
मणिपुर में 9 फरवरी, 2025 को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। पिछले एक साल से मणिपुर जातीय हिंसा की चपेट में है, जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं। इस स्थिति ने राज्य के शासन और राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से प्रभावित किया है।
मई 2023 से मणिपुर में जातीय संघर्ष चल रहा था, जिसमें मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक टकराव हुआ था। 9 फरवरी को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। इसके बाद बीजेपी पार्टी ने नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए कई बैठकें कीं, लेकिन पार्टी के भीतर असहमति और संकटों के चलते कोई समाधान नहीं निकल पाया।
राज्य में सत्ता संभालने वाली बीजेपी के पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 37 विधायक और सहयोगी दलों के 11 विधायक हैं, जिससे पूर्ण बहुमत हासिल था। इसके बावजूद, बीजेपी नेतृत्व में एक संकट था। पार्टी के भीतर बीरेन सिंह के समर्थन और विरोध में गुटबाजी हो गई थी। कई विधायक दिल्ली आकर केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी नाराजगी दर्ज कर चुके थे।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मुख्यमंत्री के चुनाव में सहमति नहीं बन पाने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। कुकी और मैतेई दोनों समुदायों में से किसी भी गुट का नेतृत्व स्वीकार्य नहीं था, जिससे पार्टी के लिए किसी एक नेता पर सहमति बनाना मुश्किल हो गया।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लागू किया गया, जो किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर केंद्रीय सरकार को राज्य के मामलों को अपने अधीन लेने का अधिकार देता है। मणिपुर में हिंसा और अस्थिरता की बढ़ती स्थिति ने इसे अनिवार्य बना दिया।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद अब विपक्षी दल भी बीजेपी पर हमलावर हो सकते हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पुराने भाषणों में कांग्रेस के समय में राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। मणिपुर में इस बार बीजेपी के लिए यह एक राजनीतिक चुनौती बन गई है, जो उनकी छवि पर असर डाल सकता है।
मणिपुर में अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना है, लेकिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद बीजेपी को अपनी साख को फिर से संवारने की चुनौती होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को अब राज्य में बेहतर नेतृत्व की जरूरत है, ताकि वह सत्ता में बने रहने में सफल हो सके।
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