Manipur Crisis: सीएम का 21 महीने बाद इस्तीफा, आखिर मणिपुर में हिंसा के बीच मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने में इतनी देरी क्यों हुई?

जब हिंसा इतनी भयानक थी, तो बीजेपी ने मुख्यमंत्री को हटाने में इतना समय क्यों लिया? इसके पीछे कई वजहें थीं।

Manipur Crisis: सीएम का 21 महीने बाद इस्तीफा, आखिर मणिपुर में हिंसा के बीच मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने में इतनी देरी क्यों हुई?

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह> (Photo- Social Media)

मणिपुर में बीते 21 महीनों से हिंसा का दौर जारी था, लेकिन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इतने लंबे समय बाद ही अपने पद से इस्तीफा क्यों दिया? यह सवाल मणिपुर ही नहीं, पूरे देश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। आखिर क्या वजह रही कि सीएम को हटाने में बीजेपी नेतृत्व को इतना वक्त लगा? आइए, इस पूरी घटना को विस्तार से समझते हैं।

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत कैसे हुई?

मणिपुर में जातीय हिंसा की शुरुआत 3 मई 2023 को हुई थी, जब मैतेई और कुकी-जो जनजातियों के बीच टकराव बढ़ गया। यह हिंसा तब भड़की, जब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग का विरोध हुआ। इसके बाद हालात इतने बिगड़ गए कि हजारों लोग बेघर हो गए और कई मारे गए। इस हिंसा के कारण राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई।

बीजेपी ने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की?

जब हिंसा इतनी भयानक थी, तो बीजेपी ने मुख्यमंत्री को हटाने में इतना समय क्यों लिया? इसके पीछे कई वजहें थीं।

  1. बीरेन सिंह की पकड़ मजबूत थी – वे बीजेपी के पुराने और भरोसेमंद नेता माने जाते हैं। पार्टी नेतृत्व को लगा कि वे हालात संभाल लेंगे।
  2. राजनीतिक मजबूरी – अगर उन्हें तुरंत हटाया जाता, तो यह स्वीकार करना होता कि सरकार हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल रही।
  3. जातीय समीकरण – मैतेई समुदाय के बड़े वर्ग का समर्थन बीरेन सिंह को था। अगर उन्हें हटा दिया जाता, तो यह संदेश जाता कि बीजेपी कुकी-जो समुदाय के दबाव में आ गई है, जिससे पार्टी का जनाधार कमजोर हो सकता था।

जनता का बढ़ता आक्रोश और विपक्ष का दबाव

हालांकि, महीनों बीतने के बावजूद हिंसा पूरी तरह से खत्म नहीं हुई। कुकी-जो समुदाय के लोगों ने बीरेन सिंह को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया और उन्हें हटाने की मांग करते रहे।

इस बीच, विपक्ष भी लगातार सरकार को निशाने पर ले रहा था। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल कह रहे थे कि अगर मुख्यमंत्री हिंसा को रोकने में असफल हैं, तो उन्हें पद छोड़ देना चाहिए।

बीजेपी के भीतर भी विरोध बढ़ा

समय के साथ बीजेपी के अंदर भी असहमति बढ़ने लगी। कई विधायक दिल्ली जाकर पार्टी नेतृत्व से मुख्यमंत्री को बदलने की मांग कर चुके थे। लेकिन पार्टी चाहती थी कि इस्तीफा किसी राजनीतिक दबाव में न दिया जाए, बल्कि इसे संगठनात्मक निर्णय के रूप में दिखाया जाए।

इस्तीफे की राह क्यों आसान नहीं थी?

बीरेन सिंह इतने महीनों तक मुख्यमंत्री बने रहे क्योंकि उनके पास बीजेपी विधायकों का समर्थन था। लेकिन जैसे-जैसे हिंसा लंबी खिंचती गई और प्रशासन की नाकामी दिखने लगी, वैसे-वैसे बीजेपी नेतृत्व को यह एहसास हुआ कि अब उन्हें बदलना ही होगा।

इस दौरान, कई रिपोर्ट्स आईं कि कुछ बीजेपी विधायक विपक्ष के साथ मिलकर नई सरकार बनाने की योजना बना रहे हैं। अगर ऐसा होता, तो बीजेपी की राज्य में पकड़ कमजोर हो जाती। यही कारण था कि पार्टी ने इस्तीफे की रणनीति को धीरे-धीरे लागू किया।

अमित शाह और केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका

बीते हफ्ते गृह मंत्री अमित शाह को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने मणिपुर की स्थिति की जानकारी दी। इसके बाद बीजेपी ने तय किया कि अब बीरेन सिंह को हटाना जरूरी हो गया है। लेकिन पार्टी चाहती थी कि यह फैसला जल्दबाजी में न लिया जाए, इसलिए इसे विधानसभा सत्र से ठीक पहले लागू किया गया।

सुप्रीम कोर्ट का दबाव भी एक कारण?

बीरेन सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी मामला चल रहा था। एक ऑडियो टेप में उनकी कथित आवाज पाई गई, जिसमें हिंसा से जुड़े बयान थे। कोर्ट ने इस पर जांच के आदेश दिए थे। यह भी माना जा रहा है कि अगर कोर्ट कोई कड़ा रुख अपनाता, तो सरकार की और किरकिरी होती। इसलिए बीजेपी ने इस्तीफे का रास्ता चुना।

अब आगे क्या होगा?

बीरेन सिंह का इस्तीफा मणिपुर की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। अब सवाल है कि नया मुख्यमंत्री कौन होगा और क्या इससे राज्य में शांति बहाल होगी? कुकी-जो संगठनों ने साफ कर दिया है कि वे अलग प्रशासन की मांग से पीछे नहीं हटेंगे।

बीरेन सिंह अब भी कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे, जब तक नया नेता चुना नहीं जाता। इससे साफ है कि बीजेपी नेतृत्व अब पूरी रणनीति बनाकर आगे बढ़ना चाहता है ताकि कोई राजनीतिक नुकसान न हो।

 मणिपुर में हिंसा के बाद मुख्यमंत्री को हटाने में बीजेपी को 21 महीने लग गए क्योंकि पार्टी को संतुलन साधना था। बीरेन सिंह को तुरंत हटाने से मैतेई समुदाय नाराज हो सकता था, जबकि उन्हें बनाए रखने से कुकी-जो समुदाय का आक्रोश बढ़ रहा था। आखिरकार, जब हालात पूरी तरह नियंत्रण से बाहर होने लगे और पार्टी पर दबाव बढ़ा, तो इस्तीफा देना पड़ा। अब देखना होगा कि नया नेतृत्व मणिपुर में शांति बहाल करने में कितना सफल होता है।

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