Maharashtra Elections: गठबंधन धर्म या छवि सुधार? महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी ने क्यों छोड़ीं कई सीटें? यहां समझें पूरा गेम प्लान

शाईना एनसी ने भी गठबंधन की वजह से शिवसेना के टिकट से मुंबादेवी सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया।

Maharashtra Elections: गठबंधन धर्म या छवि सुधार? महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी ने क्यों छोड़ीं कई सीटें? यहां समझें पूरा गेम प्लान

सत्ता के लिए राजनीतिक समझौता भी जरूरी होता है। (फोटो- सोशल मीडिया)

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का माहौल इस बार राजनीतिक दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग है। एक तरफ महा विकास अघाड़ी और महायुति ने अपने-अपने दांव चले हैं, लेकिन जमीनी हकीकत ने इस चुनाव में कुछ नया मोड़ दे दिया है। बड़े नेताओं की घोषणाओं और गठबंधनों के बावजूद, जनता के दिलों में उठ रहे सवाल और नाराजगी ने इन चुनावों को सिर्फ एक राजनीतिक मुकाबले से कहीं अधिक भावनात्मक बना दिया है। पार्टी के हितों से आगे बढ़ते हुए, यह चुनाव अब जनता के मुद्दों और उनकी उम्मीदों का केंद्र बन चुका है।

बीजेपी के कम सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला

इस बार, महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में बीजेपी केवल 148 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पहले की तुलना में 15 सीटें कम होने का कारण राज्य में बदले हुए समीकरण हैं। बीजेपी के इस फ़ैसले से उसके सहयोगी दलों, खासकर एकनाथ शिंदे की पार्टी को लाभ हुआ है, जो इस बार 80 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अजित पवार की एनसीपी 53 सीटों पर खड़ी हुई है।

सत्ता-विरोधी लहर से कैसे निपटेगी बीजेपी?

महाराष्ट्र में सत्ता-विरोधी लहर ने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। हरियाणा में ओबीसी कार्ड चलकर सत्ता-विरोधी माहौल को नियंत्रित करने की कोशिश की गई थी, लेकिन महाराष्ट्र की परिस्थितियाँ अलग हैं। ऐसे में बीजेपी ने उन सीटों पर अपने सहयोगी दलों को मौका दिया है, जहाँ उसे कठिनाई महसूस हो रही थी।

मराठा आरक्षण: बीजेपी के लिए एक चुनौती

मराठा समुदाय में बीजेपी के प्रति नाराजगी ने मराठा आरक्षण का मुद्दा और भी बड़ा बना दिया है। बीजेपी की रणनीति है कि शिवसेना और अजित पवार की पार्टी को आगे करके इस नाराजगी को कम किया जाए। वहीं राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे और पीएम मोदी को चेहरे के तौर पर प्रस्तुत कर माहौल बनाने की तैयारी है।

‘बैकडोर उम्मीदवार’ का प्लान

चुनावी समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने अपने कुछ उम्मीदवारों को शिवसेना और अजित पवार की पार्टी के टिकट पर खड़ा किया है। इससे एक ओर सहयोगी दलों को अधिक सीटें लड़ने का अवसर मिला है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी के उन नेताओं को भी मौका दिया गया है जो चुनाव में उतरना चाहते थे।

गठबंधन से निकला संतुलन का रास्ता

बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों को संतुष्ट करने के लिए कई जगहों पर संयम दिखाया है। उदाहरण के तौर पर, कोकण क्षेत्र में नारायण राणे के बेटे नितेश राणे अब शिंदे की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा, शाईना एनसी ने भी गठबंधन की वजह से शिवसेना के टिकट से मुंबादेवी सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया।

बीजेपी की मजबूरियां और चुनौती

मराठा आरक्षण, ब्राह्मण समुदाय का सीमित प्रभाव, किसानों की नाराजगी और बढ़ती बेरोजगारी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। इस रणनीति में बीजेपी का उद्देश्य न केवल अपनी छवि सुधारना है बल्कि उस नाराजगी को भी कम करना है जो जनता में उभर रही है।

 

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