इस घोटाले ने न सिर्फ दिल्ली सरकार की छवि को झटका दिया, बल्कि शराब नीति में पारदर्शिता को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए। इस नीति की खामियों की वजह से सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ, और अब इस मामले की जांच अदालत और एजेंसियों के अधीन है।
आगे की कार्रवाई यह तय करेगी कि इस घोटाले में और कौन-कौन दोषी साबित होते हैं और सरकार को हुए नुकसान की भरपाई कैसे होगी।
दिल्ली में शराब नीति घोटाले को लेकर एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में पेश की गई CAG रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली सरकार को इस नीति के कारण 2002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह घोटाला सिर्फ वित्तीय हेरफेर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नीतिगत खामियों, नियमों की अनदेखी और कुछ खास व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के भी आरोप लगे हैं।
CAG की रिपोर्ट के अनुसार, शराब नीति में बदलाव से सरकार को कई स्तरों पर घाटा हुआ। जोनल लाइसेंस जारी करने में छूट देने से 940 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि गलत तरीके से टेंडर आवंटन करने के कारण 890 करोड़ रुपये की चपत लगी। कोरोना के दौरान शराब कारोबारियों को दी गई राहत से सरकार को 144 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, और सिक्योरिटी डिपॉजिट न मिलने से 27 करोड़ रुपये की हानि हुई।
दिल्ली सरकार ने 2021 में नई शराब नीति लागू की, जिसमें सरकारी दुकानों को बंद कर पूरी बिक्री निजी कंपनियों को सौंपने का फैसला लिया गया। इस नीति में:
CAG रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सरकार ने अपनी ही एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार कर मनमाने तरीके से नीति में बदलाव किए। इससे शराब कारोबारियों को फायदा हुआ और सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
इस घोटाले में दिल्ली की पूर्व सरकार के कई बड़े नेताओं और अधिकारियों पर उंगलियां उठी हैं। सबसे बड़ा नाम मनीष सिसोदिया का है, जो उस समय दिल्ली के डिप्टी सीएम और एक्साइज मंत्री थे।
इस घोटाले ने न सिर्फ दिल्ली सरकार की छवि को झटका दिया, बल्कि शराब नीति में पारदर्शिता को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए। इस नीति की खामियों की वजह से सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ, और अब इस मामले की जांच अदालत और एजेंसियों के अधीन है। आगे की कार्रवाई यह तय करेगी कि इस घोटाले में और कौन-कौन दोषी साबित होते हैं और सरकार को हुए नुकसान की भरपाई कैसे होगी।
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