बिहार के इस कैबिनेट विस्तार ने साफ कर दिया है कि बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और जेडीयू कमजोर हो रही है। चुनावी साल में यह विस्तार जातीय संतुलन और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है।
बिहार में गुरुवार को शपथ लेते नए मंत्री। (फोटो- सोशल मीडिया)
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने कैबिनेट विस्तार किया, जिसमें सात नए मंत्रियों को शामिल किया गया। ये सभी मंत्री बीजेपी कोटे से आते हैं, जिससे पार्टी की ताकत सरकार में बढ़ गई है। विस्तार में जातीय संतुलन साधने और मिथिलांचल को साधने की कोशिश दिखती है। इससे जेडीयू की स्थिति कमजोर होती नजर आ रही है, जबकि बीजेपी का दबदबा बढ़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला चुनावी रणनीति का हिस्सा है।
1. चुनाव से पहले बिहार कैबिनेट विस्तारबिहार में विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने बड़ा कैबिनेट विस्तार किया है। बुधवार को हुए इस विस्तार में सात नए मंत्रियों को शामिल किया गया, जो सभी बीजेपी कोटे से आते हैं। इससे सरकार में बीजेपी की ताकत बढ़ी है और जेडीयू की स्थिति कमजोर होती दिख रही है। यह विस्तार ना सिर्फ राजनीतिक समीकरण बदल रहा है बल्कि जातीय संतुलन साधने की भी कोशिश है।
2. बीजेपी ने किन नेताओं को बनाया मंत्री?नए मंत्रियों में संजय सरावगी (दरभंगा), सुनील कुमार (बिहारशरीफ), जिवेश कुमार (जाले), राजू कुमार सिंह (साहेबगंज), मोती लाल प्रसाद (रीगा), विजय कुमार मंडल (सिकटी) और कृष्ण कुमार मंटू (अमनौर) शामिल हैं। इनमें पिछड़े, अति पिछड़े और सवर्ण समाज से नेताओं को जगह देकर बीजेपी ने जातीय संतुलन साधने की कोशिश की है।
3. जेडीयू की ताकत घटी, बीजेपी का दबदबा बढ़ाकैबिनेट विस्तार के बाद अब बिहार सरकार में कुल 36 मंत्री हो गए हैं। इनमें बीजेपी के 21, जेडीयू के 13, 'हम' पार्टी के 1 और 1 निर्दलीय मंत्री हैं। यह पहली बार हुआ है कि 2005 के बाद बीजेपी के मंत्रियों की संख्या जेडीयू से डेढ़ गुना ज्यादा हो गई है। इससे साफ है कि बीजेपी अब सत्ता में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में आ गई है, जबकि जेडीयू की पकड़ कमजोर हो रही है।
4. मिथिलांचल पर बीजेपी की खास नजरइस बार के विस्तार में मिथिलांचल को साधने की रणनीति साफ दिख रही है। दरभंगा और सीतामढ़ी जिले से संजय सरावगी, जिवेश कुमार और मोतीलाल प्रसाद को मंत्री बनाया गया है। दिलचस्प बात यह रही कि शपथ ग्रहण के दौरान संजय सरावगी और जिवेश कुमार ने मैथिली भाषा में शपथ ली और मिथिला की सांस्कृतिक पहचान ‘पाग’ पहनकर पहुंचे। इससे बीजेपी ने मिथिलांचल के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की रणनीति अपनाई है।
5. जातीय गणित और चुनावी रणनीतिबीजेपी ने इस विस्तार में अपने कोर वोटर सवर्ण और वैश्य समाज के साथ-साथ जेडीयू के परंपरागत लव-कुश (कुर्मी-कुशवाहा) और अति पिछड़ा वर्ग को भी साधने की कोशिश की है। भूमिहार से जिवेश कुमार, राजपूत से राजू कुमार सिंह, वैश्य से संजय सरावगी और मोती लाल प्रसाद, कुर्मी से कृष्ण कुमार मंटू, कुशवाहा से सुनील कुमार और केवट समुदाय से विजय कुमार मंडल को मंत्री बनाया गया है। इससे साफ है कि बीजेपी ने हर वर्ग को साधने की कोशिश की है।
6. नीतीश की कमजोरी या सौदेबाजी?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विस्तार से नीतीश कुमार की व्यक्तिगत छवि कमजोर हुई है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर पुष्पेंद्र के मुताबिक, नीतीश कुमार ने अब यह मान लिया है कि वह डोमिनेंट पार्टनर नहीं रहे। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी इसे नीतीश की सौदेबाजी की रणनीति बताते हैं। उनका कहना है कि यह विस्तार दिखाता है कि नीतीश अब बीजेपी को छोड़कर नहीं जाएंगे और चुनाव में सीट बंटवारे में जेडीयू अपनी शर्तें मनवाने की स्थिति में रहेगा।
बिहार के इस कैबिनेट विस्तार ने साफ कर दिया है कि बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और जेडीयू कमजोर हो रही है। चुनावी साल में यह विस्तार जातीय संतुलन और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू के बीच समीकरण किस ओर जाते हैं।
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